शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।18.42।।
।।18.42।।मनका निग्रह करना इन्द्रियोंको वशमें करना धर्मपालनके लिये कष्ट सहना बाहरभीतरसे शुद्ध रहना दूसरोंके अपराधको क्षमा करना शरीर? मन आदिमें सरलता रखना वेद? शास्त्र आदिका ज्ञान होना यज्ञविधिको अनुभवमें लाना और परमात्मा? वेद आदिमें आस्तिक भाव रखना -- ये सबकेसब ब्राह्मणके स्वाभाविक कर्म हैं।
।।18.42।। शम? दम? तप? शौच? क्षान्ति? आर्जव? ज्ञान? विज्ञान और आस्तिक्य ये ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं।।