स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।
स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु।।18.45।।
।।18.45।।अपनेअपने कर्ममें तत्परतापूर्वक लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि(परमात्मा)को प्राप्त कर लेता है। अपने कर्ममें लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार सिद्धिको प्राप्त होता है? उस प्रकारको तू मेरेसे सुन।
Every human achieves samsiddham or self-realisation by perfectly executing their own natural prescribed duty according to qualification as ordained by Vedic scriptures. How this is accomplished is explained next by Lord Krishna.