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Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 48

भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 48

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 18.48)

।।18.48।।हे कुन्तीनन्दन दोषयुक्त होनेपर भी सहज कर्मका त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि सम्पूर्ण कर्म धुएँसे अग्निकी तरह किसीनकिसी दोषसे युक्त हैं।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।18.48।। हे कौन्तेय दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म को नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि सभी कर्म दोष से आवृत होते है? जैसे धुयें से अग्नि।।