सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।
।।18.48।।हे कुन्तीनन्दन दोषयुक्त होनेपर भी सहज कर्मका त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि सम्पूर्ण कर्म धुएँसे अग्निकी तरह किसीनकिसी दोषसे युक्त हैं।
।।18.48।। हे कौन्तेय दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म को नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि सभी कर्म दोष से आवृत होते है? जैसे धुयें से अग्नि।।