यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।
।।18.5।।यज्ञ? दान और तपरूप कर्मोंका त्याग नहीं करना चाहिये? प्रत्युत उनको तो करना ही चाहिये क्योंकि यज्ञ? दान और तप -- ये तीनों ही कर्म मनीषियोंको पवित्र करनेवाले हैं।
।।18.5।। यज्ञ? दान और तपरूप कर्म त्याज्य नहीं है? किन्तु वह निसन्देह कर्तव्य है यज्ञ? दान और तप ये मनीषियों (साधकों) को पवित्र करने वाले हैं।।