भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्।।18.55।।
।।18.55।।उस पराभक्तिसे मेरेको? मैं जितना हूँ और जो हूँ -- इसको तत्त्वसे जान लेता है तथा मेरेको तत्त्वसे जानकर फिर तत्काल मेरेमें प्रविष्ट हो जाता है।
।।18.55।। (उस परा) भक्ति के द्वारा मुझे वह तत्त्वत जानता है कि मैं कितना (व्यापक) हूँ तथा मैं क्या हूँ। (इस प्रकार) तत्त्वत जानने के पश्चात् तत्काल ही वह मुझमें प्रवेश कर जाता है? अर्थात् मत्स्वरूप बन जाता है।।