यदहङ्कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे।
मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति।।18.59।।
।।18.59।।अहंकारका आश्रय लेकर तू जो ऐसा मान रहा है कि मैं युद्ध नहीं करूँगा? तेरा यह निश्चय मिथ्या (झूठा) है क्योंकि तेरी क्षात्रप्रकृति तेरेको युद्धमें लगा देगी।
।।18.59।। और अहंकारवश तुम जो यह सोच रहे हो? मैं युद्ध नहीं करूंगा? यह तुम्हारा निश्चय मिथ्या है? (क्योंकि) प्रकृति (तुम्हारा स्वभाव) ही तुम्हें (बलात् कर्म में) प्रवृत्त करेगी।।