स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा।
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्।।18.60।।
।।18.60।। हे कौन्तेय तुम अपने स्वाभाविक कर्मों से बंधे हो? (अत) मोहवशात् जिस कर्म को तुम करना नहीं चाहते हो? वही तुम विवश होकर करोगे।।
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