सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्।।18.64।।
।।18.64।। पुन एक बार तुम मुझसे समस्त गुह्यों में गुह्यतम परम वचन (उपदेश) को सुनो। तुम मुझे अतिशय प्रिय हो? इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारे हित की बात कहूंगा।।
।।18.64।। सम्भवत? जब भगवान् ने यह देखा कि अर्जुन अभी तक कुछ निश्चित निर्णय नहीं ले पा रहा है? तब स्नेहवश वे पुन अपने उपदेश के मुख्य सिद्धांत को दोहराने का वचन देते हैं। इस पुनरुक्ति का प्रमुख कारण केवल मित्रप्रेम और अर्जुन के हित की कामना ही है।वह गुह्यतम उपदेश क्या है