मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।।
।।18.65।। तुम मच्चित? मद्भक्त और मेरे पूजक (मद्याजी) बनो और मुझे नमस्कार करो (इस प्रकार) तुम मुझे ही प्राप्त होगे यह मैं तुम्हे सत्य वचन देता हूँ? (क्योंकि) तुम मेरे प्रिय हो।।
Now Lord Krishna reveals the essence, the most confidential of all knowledge within Srimad Bhagavad Gita which will secure permanent release from samsara the perpetual cycle of birth and death, guarantee moksa or liberation from material existence and propel spiritual ascendance unto eternal communion with the Supreme Lord.