नियतस्य तु संन्यासः कर्मणो नोपपद्यते।
मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः।।18.7।।
।।18.7।। नियत कर्म का त्याग उचित नहीं है मोहवश उसका त्याग करना तामस त्याग कहा गया है।।
।।18.7।। नियत अर्थात् कर्तव्य कर्मों का त्याग अत्यन्त निम्नस्तर का तामस त्याग माना गया है। नित्य और नैमित्तक कर्मों के सम्मिलित रूप को ही नियत कर्म कहते हैं। जब तक मनुष्य अपने समाज के एक सदस्य के रूप में जीवन यापन करता है? तब तक उसे वह समाज? सुरक्षा तथा उन्नति का लाभ भी प्रदान करता है। अत हिन्दू नीति के अनुसार? मनुष्य को अपने कर्तव्यों को त्यागने का कोई अधिकार नहीं है।यदि कोई व्यक्ति अज्ञानवश अपने नैतिक कर्तव्यों का त्याग करता है तब भी वह क्षम्य नहीं है। जैसे? संविधान के और भौतिक जगत् के प्राकृतिक नियमों के पालन के संबंध में नियम का अज्ञान क्षम्य नहीं माना जाता? वैसे ही आध्यात्मिक क्षेत्र में भी यही नियम लागू होता है। अज्ञान और अविवेक के कारण यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य पालन के द्वारा समाज सेवा नहीं करता है? तो उसका यह त्याग मूढ़ अर्थात् तामसिक त्याग है।