कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा।
कच्चिदज्ञानसंमोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय।।18.72।।
।।18.72।। हे पार्थ क्या इसे (मेरे उपदेश को) तुमने एकाग्रचित्त होकर श्रवण किया और हे धनञ्जय क्या तुम्हारा अज्ञान जनित संमोह पूर्णतया नष्ट हुआ
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