कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।
सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः।।18.9।।
।।18.9।। हे अर्जुन कर्म करना कर्तव्य है ऐसा समझकर जो नियत कर्म आसक्ति और फल को त्यागकर किया जाता है? वही सात्त्विक त्याग माना गया है।।
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