श्री भगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।
।।2.2।।श्रीभगवान् बोले (टिप्पणी प0 38.1) हे अर्जुन इस विषम अवसरपर तुम्हें यह कायरता कहाँसे प्राप्त हुई जिसका कि श्रेष्ठ पुरुष सेवन नहीं करते जो स्वर्गको देनेवाली नहीं है और कीर्ति करनेवाली भी नहीं है।
।।2.2।। श्री भगवान् ने कहा -- हे अर्जुन तुमको इस विषम स्थल में यह मोह कहाँ से उत्पन्न हुआ यह आर्य आचरण के विपरीत न तो स्वर्ग प्राप्ति का साधन ही है और न कीर्ति कराने वाला ही है।।