अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।2.25।।
।।2.25।।यह देही प्रत्यक्ष नहीं दीखता यह चिन्तनका विषय नहीं है और इसमें कोई विकार नहीं है। अतः इस देहीको ऐसा जानकर शोक नहीं करना चाहिये।
।।2.25।। यह आत्मा अव्यक्त? अचिन्त्य और अविकारी कहा जाता है इसलिए इसको इस प्रकार जानकर तुमको शोक करना उचित नहीं है।।