अथ चैत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि।।2.33।।
।।2.33।।अब अगर तू यह धर्ममय युद्ध नहीं करेगा तो अपने धर्म और कीर्तिका त्याग करके पापको प्राप्त होगा।
।।2.33।। और यदि तुम इस धर्मयुद्ध को स्वीकार नहीं करोगे? तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त करोगे।।