भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम्।।2.35।।
।।2.35।।महारथीलोग तुझे भयके कारण युद्धसे उपरत हुआ मानेंगे। जिनकी धारणामें तू बहुमान्य हो चुका है उनकी दृष्टिमें तू लघुताको प्राप्त हो जायगा।
2.35।। व्याख्या भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः तू ऐसा समझता है कि मैं तो केवल अपना कल्याण करनेके लिये युद्धसे उपरत हुआ हूँ परन्तु अगर ऐसी ही बात होती और युद्धको तू पाप समझता तो पहले ही एकान्तमें रहकर भजनस्मरण करता और तेरी युद्धके लिये प्रवृत्ति भी नहीं होती। परन्तु तू एकान्तमें न रहकर युद्धमें प्रवृत्त हुआ है। अब अगर तू युद्धसे निवृत्त होगा तो बड़ेबड़े महारथीलोग ऐसा ही मानेंगे कि युद्धमें मारे जानेके भयसे ही अर्जुन युद्धसे निवृत्त हुआ है। अगर वह धर्मका विचार करता तो युद्धसे निवृत्त नहीं होता क्योंकि युद्ध करना क्षत्रियका धर्म है। अतः वह मरनेके भयसे ही युद्धसे निवृत्त हो रहा है। येषाँ च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् भीष्म द्रोणाचार्य कृपाचार्य शल्य आदि जो बड़ेबड़े महारथी है उनकी दृष्टिमें तू बहुमान्य हो चुका है अर्थात् उनके मनमें यह एक विश्वास है कि युद्ध करनेमें नामी शूरवीर तो अर्जुन ही है। वह युद्धमें अनेक दैत्यों देवताओं गन्धर्वों आदिको हरा चुका है। अगर अब तू युद्धसे निवृत्त हो जायगा तो उन महारथियोंके सामने तू लधुता(तुच्छता) को प्राप्त हो जायगा अर्थात् उनकी दृष्टिमें तू गिर जायगा।