कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्।
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति।।2.43।।
।।2.42 2.43।।हे पृथानन्दन जो कामनाओंमें तन्मय हो रहे हैं स्वर्गको ही श्रेष्ठ माननेवाले हैं वेदोंमें कहे हुए सकाम कर्मोंमें प्रीति रखनेवाले हैं भोगोंके सिवाय और कुछ है ही नहीं ऐसा कहनेवाले हैं वे अविवेकी मनुष्य इस प्रकारकी जिस पुष्पित (दिखाऊ शोभायुक्त) वाणीको कहा करते हैं जो कि जन्मरूपी कर्मफलको देनेवाली है तथा भोग और ऐश्वर्यकी प्राप्तिके लिये बहुतसी क्रियाओंका वर्णन करनेवाली है।
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