न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम
स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।।2.6।।
।।2.6।।हम यह भी नहीं जानते कि हमलोगोंके लिये युद्ध करना और न करना इन दोनोंमेंसे कौनसा अत्यन्त श्रेष्ठ है और हमें इसका भी पता नहीं है कि हम उन्हें जीतेंगे अथवा वे हमें जीतेंगे। जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते वे ही धृतराष्ट्रके सम्बन्धी हमारे सामने खड़े हैं।
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