यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्िचतः।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः।।2.60।।
।।2.60।।हे कुन्तीनन्दन (रसबुद्धि रहनेसे) यत्न करते हुए विद्वान् मनुष्यकी भी प्रमथनशील इन्द्रियाँ उसके मनको बलपूर्वक हर लेती हैं।
।।2.60।। हे कौन्तेय (संयम का) प्रयत्न करते हुए बुद्धिमान (विपश्चित) पुरुष के भी मन को ये इन्द्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं।।