नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्।।2.66।।
।।2.66।। (संयमरहित) अयुक्त पुरुष को (आत्म) ज्ञान नहीं होता और अयुक्त को भावना और ध्यान की क्षमता नहीं होती भावना रहित पुरुष को शान्ति नहीं मिलती अशान्त पुरुष को सुख कहाँ
।।2.66।। शास्त्रों में मन की शान्ति पर बल देने का कारण यहाँ स्पष्ट किया गया है। मन शान्ति के अभाव के कारण बुद्धि में सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिये आवश्यक विचार करने की क्षमता नहीं होती। शान्ति के न होने पर जीवन की समस्याओं को समझने की बौद्धिक तत्परता का अभाव होता है और तब जीवन का सही मूल्यांकन कर आत्मज्ञान एवं ध्यान के लिए अवसर ही नहीं रहता। ध्रुव तारे के समान जीवन में महान लक्ष्य के न होने पर हमारा जीवन समुद्र में खोये जलपोत के समान भटकता हुआ अन्त में किसी विशाल चट्टान से टकराकर नष्ट हो जाता है।लक्ष्यहीन दिशाहीन पुरुष को कभी शान्ति नहीं मिलती और ऐसे अशान्त पुरुष को सुख कहाँ जीवन सिन्धु की शान्त अथवा विक्षुब्ध तरंगों में सुख या दुख के समय संयम से रहने के लिये परमार्थ का लक्ष्य हमारी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होना चाहिये। एक मृदंग वादक के बिना नर्तकी के पैर लय और गति को नियन्त्रित नहीं रख सकते।अयुक्त (संयमरहित) पुरुष को ज्ञान क्यों नहीं होता सुनो