विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।
।।2.71।।जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंका त्याग करके निर्मम निरहंकार और निःस्पृह होकर विचरता है वह शान्तिको प्राप्त होता है।
।।2.71।। जो पुरुष सब कामनाओं को त्यागकर स्पृहारहित? ममभाव रहित और निरहंकार हुआ विचरण करता है? वह शान्ति प्राप्त करता है।।