एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।3.16।।
।।3.16।।हे पार्थ जो मनुष्य इस लोकमें इस प्रकार परम्परासे प्रचलित सृष्टिचक्रके अनुसार नहीं चलता वह इन्द्रियोंके द्वारा भोगोंमें रमण करनेवाला अघायु (पापमय जीवन बितानेवाला) मनुष्य संसारमें व्यर्थ ही जीता है।
।।3.16।। जो पुरुष यहाँ इस प्रकार प्रवर्तित हुए चक्र का अनुवर्तन नहीं करता हे पार्थ इंन्द्रियों में रमने वाला वह पाप आयु पुरुष व्यर्थ ही जीता है।।