व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्िचत्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्।।3.2।।
।।3.2।। आप इस मिश्रित वाक्य से मेरी बुद्धि को मोहितसा करते हैं अत आप उस एक (मार्ग) को निश्चित रूप से कहिये जिससे मैं परम श्रेय को प्राप्त कर सकूँ।।
।।3.2।। पहले से ही मोहितमन अर्जुन में सामान्य मनुष्य होने के नाते वह सूक्ष्म बुद्धि नहीं थी जिसके द्वारा विवेकपूर्वक भगवान् के सूक्ष्म तर्कों को समझ कर वह निश्चित कर सके कि परम श्रेय की प्राप्ति के लिए कर्म मार्ग सरल था अथवा ज्ञान मार्ग। इसलिए वह यहाँ भगवान् से नम्र निवेदन करता है आप उस मार्ग को निश्चित कर आदेश करिये जिससे मैं परम श्रेय को प्राप्त कर सकूँ।अर्जुन को इसमें संदेह नहीं था कि जीवन केवल धन के उपार्जन परिग्रह और व्यय के लिए नहीं है। वह जानता था कि उसका जीवन श्रेष्ठ सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए था जिसके लिए भौतिक उन्नति केवल साधन थी साध्य नहीं। अर्जुन मात्र यह जानना चाहता था कि वह उपलब्ध परिस्थितियों का जीवन की लक्ष्य प्राप्ति और भविष्य निर्माण में किस प्रकार सदुपयोग करे।प्रश्न के अनुरूप भगवान् उत्तर देते हैं