आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।3.39।।
।।3.39।।और हे कुन्तीनन्दन इस अग्निके समान कभी तृप्त न होनेवाले और विवेकियोंके नित्य वैरी इस कामके द्वारा मनुष्यका विवेक ढका हुआ है।
।।3.39।। हे कौन्तेय अग्नि के समान जिसको तृप्त करना कठिन है ऐसे कामरूप ज्ञानी के इस नित्य शत्रु द्वारा ज्ञान आवृत है।।