न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।4.14।।
।।4.13 4.14।।मेरे द्वारा गुणों और कर्मोंके विभागपूर्वक चारों वर्णोंकी रचना की गयी है। उस(सृष्टिरचना आदि) का कर्ता होनेपर भी मुझ अव्यय परमेश्वरको तू अकर्ता जान। कारण कि कर्मोंके फलमें मेरी स्पृहा नहीं है इसलिये मुझे कर्म लिप्त नहीं करते। इस प्रकार जो मुझे तत्त्वसे जान लेता है वह भी कर्मोंसे नहीं बँधता।
।।4.14।। कर्म मुझे लिप्त नहीं करते न मुझे कर्मफल में स्पृहा है। इस प्रकार मुझे जो जानता है वह भी कर्मों से नहीं बन्धता है।।