अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे।
प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः।।4.29।।
।।4.29।। अन्य (योगीजन) अपानवायु में प्राणवायु को हवन करते हैं तथा प्राण में अपान की आहुति देते हैं प्राण और अपान की गति को रोककर वे प्राणायाम के ही समलक्ष्य समझने वाले होते हैं।।
Continuing Lord Krishna explains that others who are devoted to pranayama or regulation of the breath offer the prana or outgoing breath to the apana or incoming breath and the incoming breath to the outgoing breath. In this way they arrive at the stage of kumbhaka or complete restraint of the breath and this is considered to be yagna or offerings of worship.