एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे।।4.32।।
।।4.32।। ऐसे अनेक प्रकार के यज्ञों का ब्रह्मा के मुख अर्थात् वेदों में प्रसार है अर्थात् वर्णित हैं। उन सब को कर्मों से उत्पन्न हुए जानो इस प्रकार जानकर तुम मुक्त हो जाओगे।।
।।4.32।। जगत् में देखा जाता है कि दो विभिन्न कर्मों के फल भी भिन्नभिन्न होते हैं। अत इन बारह यज्ञकर्मों के फल भी विभिन्न होने चाहिए। यह दर्शाने के लिये कि इनमें भेद प्रतीत होते हुए भी सब का लक्ष्य एक ही है यहाँ कहा है कि इस प्रकार बहुत से यज्ञ ब्रह्मा के मुख में फैले हुए है इसका तात्पर्य है कि सभी यज्ञों का लक्ष्य ब्रह्म ही है। सभी राजमार्ग राजधानी को ही जाते हैं।उन सबको कर्मों से उत्पन्न हुए जानो भगवान् के इस कथन से दो अभिप्राय हैं (क) वेदों में उपदिष्ट इन साधनों का अभ्यास प्रयत्नपूर्वक करना चाहिये। भगवान् अर्जुन को स्मरण दिलाते हैं कि यदि वह आत्मविकास का इच्छुक है तो कर्म अपरिहार्य है। तथा (ख) ये सब यज्ञ केवल साधन हैं साध्य नहीं। हमारा लक्ष्य है पूर्णत्व की स्थिति जबकि कर्म उस पूर्णस्वरूप के अज्ञान से उत्पन्न इच्छाओं के कारण ही होते हैं।इस प्रकार जानकर तुम मुक्त हो जाओगे जानने का अर्थ बौद्धिक स्तर पर न होकर साक्षात् आत्मानुभूति से है।सम्यक् ज्ञान को ज्ञानयज्ञ कहा गया था। तत्पश्चात् अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन किया गया है। अब अन्य यज्ञों की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ की विशेषता बताते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं।