अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।।4.36।।
।।4.36।। यदि तुम सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाले हो तो भी ज्ञानरूपी नौका द्वारा निश्चय ही सम्पूर्ण पापों का तुम संतरण कर जाओगे।।
To emphasise the power of spiritual knowledge Lord Krishna specifically states in this verse that even the most incorrigible sinner is redeemed if changing their ways acquires and applies spiritual knowledge in their consciousness.