परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।
।।4.8।।साधुओं(भक्तों) की रक्षा करनेके लिये पापकर्म करनेवालोंका विनाश करनेके लिये और धर्मकी भलीभाँति स्थापना करनेके लिये मैं युगयुगमें प्रकट हुआ करता हूँ।
।।4.8।। साधु पुरुषों के रक्षण दुष्कृत्य करने वालों के नाश तथा धर्म संस्थापना के लिये मैं प्रत्येक युग में प्रगट होता हूँ।।