बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते।।5.21।।
।।5.21।।बाह्यस्पर्शमें आसक्तिरहित अन्तःकरणवाला साधक आत्मामें जो सुख है उसको प्राप्त होता है। फिर वह ब्रह्ममें अभिन्नभावसे स्थित मनुष्य अक्षय सुखका अनुभव करता है।
।।5.21।। बाह्य विषयों में आसक्तिरहित अन्तकरण वाला पुरुष आत्मा में ही सुख प्राप्त करता है ब्रह्म के ध्यान में समाहित चित्त वाला पुरुष अक्षय सुख प्राप्त करता है।।