ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।5.22।।
।।5.22।।क्योंकि हे कुन्तीनन्दन जो इन्द्रियों और विषयोंके संयोगसे पैदा होनेवाले भोग (सुख) हैं वे आदिअन्तवाले और दुःखके ही कारण हैं। अतः विवेकशील मनुष्य उनमें रमण नहीं करता।
।।5.22।। हे कौन्तेय (इन्द्रिय तथा विषयों के) संयोग से उत्पन्न होने वाले जो भोग हैं वे दुख के ही हेतु हैं क्योंकि वे आदिअन्त वाले हैं। बुद्धिमान् पुरुष उनमें नहीं रमता।।