योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।।5.24।।
।।5.24।।जो मनुष्य केवल परमात्मामें सुखवाला है और केवल परमात्मामें रमण करनेवाला है तथा जो केवल परमात्मामें ज्ञानवाला है वह ब्रह्ममें अपनी स्थितिका अनुभव करनेवाला सांख्ययोगी निर्वाण ब्रह्मको प्राप्त होता है।
।।5.24।। जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुख वाला आत्मा में ही आराम वाला तथा आत्मा में ही ज्ञान वाला है वह योगी ब्रह्मरूप बनकर ब्रह्मनिर्वाण अर्थात् परम मोक्ष को प्राप्त होता है।।