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Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 28

भगवद् गीता अध्याय 5 श्लोक 28

यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः।।5.28।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 5.28)

।।5.27 5.28।।बाह्य पदार्थोंको बाहर ही छोड़कर और नेत्रोंकी दृष्टिको भौंहोंके बीचमें स्थित करके तथा नासिकामें विचरनेवाले प्राण और अपान वायुको सम करके जिसकी इन्द्रियाँ मन और बुद्धि अपने वशमें हैं जो मोक्षपरायण है तथा जो इच्छा भय और क्रोधसे सर्वथा रहित है वह मुनि सदा मुक्त ही है।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।5.28।। जिस पुरुष की इन्द्रियाँ मन और बुद्धि संयत हैं ऐसा मोक्ष परायण मुनि इच्छा भय और क्रोध से रहित है वह सदा मुक्त ही है।।