यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति।।5.5।।
।।5.5।।सांख्ययोगियोंके द्वारा जो तत्त्व प्राप्त किया जाता है कर्मयोगियोंके द्वारा भी वही प्राप्त किया जाता है। अतः जो मनुष्य सांख्ययोग और कर्मयोगको (फलरूपमें) एक देखता है वही ठीक देखता है।
।।5.5।। जो स्थान ज्ञानियों द्वारा प्राप्त किया जाता है उसी स्थान पर कर्मयोगी भी पहुँचते हैं। इसलिए जो पुरुष सांख्य और योग को (फलरूप से) एक ही देखता है वही (वास्तव में) देखता है।।