संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति।।5.6।।
।।5.6।।(टिप्पणी प0 286) परन्तु हे महाबाहो कर्मयोगके बिना संन्यास सिद्ध होना कठिन है। मननशील कर्मयोगी शीघ्र ही ब्रह्मको प्राप्त हो जाता है।
।।5.6।। परन्तु हे महाबाहो योग के बिना संन्यास प्राप्त होना कठिन है योगयुक्त मननशील पुरुष परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त होता है।।