शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्।।6.11।।
।।6.11।।शुद्ध भूमिपर जिसपर क्रमशः कुश मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं जो न अत्यन्त ऊँचा है और न अत्यन्त नीचा ऐसे अपने आसनको स्थिरस्थापन करके
।।6.11।। शुद्ध (स्वच्छ) भूमि में कुश मृगशाला और उस पर वस्त्र रखा हो ऐसे अपने आसन को न अति ऊँचा और न अति नीचा स्थिर स्थापित करके৷৷.।।