यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा।।6.18।।
।।6.18।।वशमें किया हुआ चित्त जिस कालमें अपने स्वरूपमें ही स्थित हो जाता है और स्वयं सम्पूर्ण पदार्थोंसे निःस्पृह हो जाता है उस कालमें वह योगी कहा जाता है।
।।6.18।। जब पूर्ण रूप से वश में किया हुआ चित्त आत्मा में ही स्थित होता है तब समस्त विषयों से स्पृहारहित हुआ पुरुष युक्त कहा जाता है।।