सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः।।6.24।।
।।6.24।।संकल्पसे उत्पन्न होनेवाली सम्पूर्ण कामनाओंका सर्वथा त्याग करके और मनसे ही इन्द्रियसमूहको सभी ओरसे हटाकर।
।।6.24।। संकल्प से उत्पन्न समस्त कामनाओं को निशेष रूप से परित्याग कर मन के द्वारा इन्द्रिय समुदाय को सब ओर से सम्यक् प्रकार वश में करके।।
।।6.24।। व्याख्या जो स्थिति कर्मफलका त्याग करनेवाले कर्मयोगीकी होती है (6। 1 9) वही स्थिति सगुणसाकार भगवान्का ध्यान करनेवालेकी (6। 14 15) तथा अपने स्वरूपका ध्यान करनेवाले ध्यानयोगीकी भी होती है (6। 18 23)। अब निर्गुणनिराकारका ध्यान करनेवालेकी भी वही स्थिति होती है यह बतानेके लिये भगवान् आगेका प्रकरण कहते हैं।संकल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः सांसारिक वस्तु व्यक्ति पदार्थ देश काल घटना परिस्थिति आदिको लेकर मनमें जो तरहतरहकी स्फुरणाएँ होती हैं उन स्फुरणाओंमेंसे जिस स्फुरणामें प्रियता सुन्दरता और आवश्यकता दीखती है वह स्फुरणा संकल्प का रूप धारण कर लेती है। ऐसे ही जिस स्फुरणामें ये वस्तु व्यक्ति आदि बड़े खराब हैं ये हमारे उपयोगी नहीं हैं ऐसा विपरीत भाव पैदा हो जाता है वह स्फुरणा भी संकल्प बन जाती है। संकल्पसे ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं चाहिये यह कामना उत्पन्न होती है। इस प्रकार संकल्पसे उत्पन्न होनेवाली कामनाओंका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये।यहाँ कामान् पद बहुवचनमें आया है फिर भी इसके साथ सर्वान् पद देनेका तात्पर्य है कि कोई भी और किसी भी तरहकी कामना नहीं रहनी चाहिये।अशेषतः पदका तात्पर्य है कि कामनाका बीज (सूक्ष्म संस्कार) भी नहीं रहना चाहिये। कारण कि वृक्षके एक बीजसे ही मीलोंतकका जंगल पैदा हो सकता है। अतः बीजरूप कामनाका भी त्याग होना चाहिये।मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः जिन इन्द्रियोंसे शब्द स्पर्श रूप रस और गन्ध इन विषयोंका अनुभव होता है भोग होता है उन इन्द्रियोंके समूहका मनके द्वारा अच्छी तरहसे नियमन कर ले अर्थात् मनसे इन्द्रियोंको उनके अपनेअपने विषयोंसे हटा ले।समन्ततः कहनेका तात्पर्य है कि मनसे शब्द स्पर्श आदि विषयोंका चिन्तन न हो और सांसारिक मान बड़ाई आराम आदिकी तरफ किञ्चिन्मात्र भी खिंचाव न हो।तात्पर्य है कि ध्यानयोगीको इन्द्रियों और अन्तःकरणके द्वारा प्राकृत पदार्थोंसे सर्वथा सम्बन्धविच्छेदका निश्चय कर लेना चाहिये। सम्बन्ध पूर्वश्लोकमें भगवान्ने सम्पूर्ण कामनाओंका त्याग एवं इन्द्रियोंका निग्रह करनेके निश्चयकी बात कही। अब कामनाओंका त्याग और इन्द्रियोंका निग्रह कैसे करें इसका उपाय आगेके श्लोकमें बताते हैं।
।।6.24।। No commentary.