शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्।।6.25।।
।।6.25।।धैर्ययुक्त बुद्धिके द्वारा संसारसे धीरेधीरे उपराम हो जाय और परमात्मस्वरूपमें मन(बुद्धि) को सम्यक् प्रकारसे स्थापन करके फिर कुछ भी चिन्तन न करे।
।।6.25।। शनै शनै धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा (योगी) उपरामता (शांति) को प्राप्त होवे मन को आत्मा में स्थित करके फिर अन्य कुछ भी चिन्तन न करे।।