यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।6.26।।
।।6.26।।यह अस्थिर और चञ्चल मन जहाँजहाँ विचरण करता है वहाँवहाँसे हटाकर इसको एक परमात्मामें ही लगाये। (टिप्पणी प0 360)
।।6.26।। यह चंचल और अस्थिर मन जिन कारणों से (विषयों में) विचरण करता है उनसे संयमित करके उसे आत्मा के ही वश में लावे अर्थात् आत्मा में स्थिर करे।।