तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्।
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन।।6.43।।
।।6.43।।हे कुरुनन्दन वहाँपर उसको पूर्वजन्मकृत साधनसम्पत्ति अनायास ही प्राप्त हो जाती है। उससे वह साधनकी सिद्धिके विषयमें पुनः विशेषतासे यत्न करता है।
।।6.43।। हे कुरुनन्दन वह पुरुष वहाँ पूर्व देह में प्राप्त किये गये ज्ञान से सम्पन्न होकर योगसंसिद्धि के लिए उससे भी अधिक प्रयत्न करता है।।