जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।6.7।।
।।6.7।। शीतउष्ण सुखदुख तथा मानअपमान में जो प्रशान्त रहता है ऐसे जितात्मा पुरुष के लिये परमात्मा सम्यक् प्रकार से स्थित है अर्थात् आत्मरूप से विद्यमान है।।
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