उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।7.18।।
।।7.18।। (यद्यपि) ये सब उत्कृष्ट हैं परन्तु ज्ञानी तो मेरा स्वरूप ही है ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह स्थिर बुद्धि ज्ञानी अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें अच्छी प्रकार स्थित है।।