कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया।।7.20।।
।।7.20।।उनउन कामनाओंसे जिनका ज्ञान अपहृत हो गया है ऐसे वे मनुष्य अपनीअपनी प्रकृतिसे नियन्त्रित होकर (देवताओंके) उनउन नियमोंको धारण करते हुए उनउन देवताओंके शरण हो जाते हैं (टिप्पणी प0 429.1)।
।।7.20।। भोगविशेष की कामना से जिनका ज्ञान हर लिया गया है ऐसे पुरुष अपने स्वभाव से प्रेरित हुए अन्य देवताओं को विशिष्ट नियम का पालन करते हुए भजते हैं।।