यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।7.21।।
।।7.21।।(टिप्पणी प0 430) जोजो भक्त जिसजिस देवताका श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहता है उसउस देवताके प्रति मैं उसकी श्रद्धाको दृढ़ कर देता हूँ।
।।7.21।। जोजो (सकामी) भक्त जिसजिस (देवता के) रूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है उसउस (भक्त) की मैं उस ही देवता के प्रति श्रद्धा को स्थिर करता हूँ।।