इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप।।7.27।।
।।7.27।।हे भरतवंशमें उत्पन्न परंतप इच्छा (राग) और द्वेषसे उत्पन्न होनेवाले द्वन्द्वमोहसे मोहित सम्पूर्ण प्राणी संसारमें मूढ़ताको अर्थात् जन्ममरणको प्राप्त हो रहे हैं।
।।7.27।। हे परन्तप भारत इच्छा और द्वेष से उत्पन्न द्वन्द्वमोह से भूतमात्र उत्पत्ति काल में ही संमोह (अविवेक) को प्राप्त होते हैं।।