मनुष्याणां सहस्रेषु कश्िचद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्िचन्मां वेत्ति तत्त्वतः।।7.3।।
।।7.3।।हजारों मनुष्योंमें कोई एक वास्तविक सिद्धिके लिये यत्न करता है और उन यत्न करनेवाले सिद्धोंमें कोई एक ही मुझे तत्त्वसे जानता है।
।।7.3।। सहस्रों मनुष्यों में कोई ही मनुष्य पूर्णत्व की सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्नशील साधकों में भी कोई ही पुरुष मुझे तत्त्व से जानता है।।