अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः।।8.2।।
।।8.2।। और हे मधुसूदन यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस शरीर में कैसे है और संयत चित्त वाले पुरुषों द्वारा अन्त समय में आप किस प्रकार जाने जाते हैं,
।।8.2।। पूर्व अध्याय के अन्तिम दो श्लोकों में अकस्मात् ब्रह्म अध्यात्म अधिभूत आदि जैसे नवीन पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया गया है और कहा है कि ज्ञानी पुरुष मरण काल में भी चित्त युक्त होकर मुझे इनके सहित जानते हैं। इससे अर्जुन कुछ भ्रमित हो गया।इस अध्याय का प्रारम्भ अर्जुन के प्रश्न के साथ होता है जिसमें वह उन शास्त्रीय शब्दों की निश्चित परिभाषायें जानना चाहता है जिनका प्रयोग भगवान् ने अपने उपदेश में किया था। वह यह भी जानने को उत्सुक है कि जीवन काल में सतत आध्यात्मिक साधना के अभ्यास के फलस्वरूप प्राप्त पूर्ण आत्मसंयम के द्वारा मरणकाल में भी आत्मा का अनुभव किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है।भगवान् श्रीकृष्ण प्रत्येक शब्द की परिभाषा देते हुए कहते हैं --