अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।8.21।।
।।8.21।।उसीको अव्यक्त और अक्षर कहा गया है और उसीको परमगति कहा गया है तथा जिसको प्राप्त होनेपर फिर लौटकर नहीं आते वह मेरा परमधाम है।
।।8.21।। जो अव्यक्त अक्षर कहा गया है वही परम गति (लक्ष्य) है। जिसे प्राप्त होकर (साधकगण) पुनः (संसार को) नहीं लौटते वह मेरा परम धाम है।।