वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव
दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।
अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा
योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।।8.28।।
।।8.28।।योगी इसको (शुक्ल और कृष्णमार्गके रहस्यको) जानकर वेदोंमें यज्ञोंमें तपोंमें तथा दानमें जोजो पुण्यफल कहे गये हैं उन सभी पुण्यफलोंका अतिक्रमण कर जाता है और आदिस्थान परमात्माको प्राप्त हो जाता है।
।।8.28।। योगी पुरुष यह सब (दोनों मार्गों के तत्त्व को) जानकर वेदाध्ययन यज्ञ तप और दान करने में जो पुण्य फल कहा गया है उस सबका उल्लंघन कर जाता है और आद्य (सनातन) परम स्थान को प्राप्त होता है।।